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आज सकट चौथ है, इस दिन माताएं अपनी संतान के लिए निर्जला व्रत रहती है और शाम को चांद को देखकर व्रत का पारण करती हैं। यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और जीवन कल्याण के लिए व्रत करती हैं जिससे भगवान गणेश और चौथ माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है तो आइए हम आपको सकट चौथ का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।सकट चौथ का व्रत महिलाएं माघ मास के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्थी को रखती हैं। संतान की दीर्घायु के लिए माताएं इस व्रत को पूरी श्रृद्धा और आस्‍था के साथ करती हैं। इस साल यह व्रत 17 जनवरी शुक्रवार को रखा जा रहा है। इस दिन महिलाएं सुबह तिल के पानी से स्‍नान करके यह व्रत करती हैं और शाम में गणेशजी की विधि विधान से पूजा करके व्रत कथा पढ़ती हैं। इसके बाद चंद्रोदय होने की प्रतीक्षा करती हैं और फिर चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर अपना व्रत खोलती हैं। इस व्रत को कुछ स्थानों पर तिलवा और तिलकुट चतुर्थी कहते हैं। इस दिन माताएं अपने संतान के सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और गणेश जी की पूजा करती हैं। विघ्नहर्ता श्री गणेश जी के आशीर्वाद से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन पूजा के दौरान गणेश जी को तिलकुट का भोग लगाते हैं और सकट चौथ की व्रत कथा पढ़ते हैं। व्रत कथा पढ़ने से आपको व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है और उसकी महत्ता पता चलती है।भगवान गणेश को पुष्प अर्पित करें। इसके बाद भगवान गणेश को दूर्वा घास भी अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दूर्वा घास चढ़ाने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं। भगवान गणेश को सिंदूर लगाएं।धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक गांव में एक कुम्हार रहता था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता था। लेकिन जब कुम्हार ने बर्तनों को पकाने के लिए भट्टी में डाला तो उसने देखा की अग्नि पात्रों को पकाने में सक्षम नहीं थी। कुम्हार के निरन्तर प्रयत्नों के पश्चात् भी मिट्टी के पात्र पक नहीं पा रहे थे। हर प्रकार की कोशिश के करने के बाद कुम्हार ने राजा से सहायता मांगी। कुम्हार की समस्या सुनने के बाद महाराज ने पंडित से चार-विमर्श किया तथा उनसे इस विचित्र समस्या का समाधान माँगा। पंडित ने सुझाव दिया कि प्रत्येक समय पात्रों को पकाने हेतु भट्टी तैयार करने के अवसर पर एक बालक की बलि दी जाये। पंडित का सुझाव सुनकर महाराज ने राज्य में यह घोषित कर दिया कि सदैव भट्टी तैयार होने के अवसर पर प्रत्येक परिवार को बलि हेतु एक बालक प्रदान करना होगा। महाराज के आदेश का पालन करने हेतु समस्त परिवारों ने एक-एक करके अपनी एक सन्तान को देना आरम्भ कर दिया।

कुछ दिन के बाद एक वृद्ध स्त्री की बारी आयी, जिसका एक ही पुत्र था। उस दिन सकट चौथ का पर्व था। उस वृद्ध स्त्री का एक ही पुत्र था, जो उसके अन्तिम क्षणों का एकमात्र सहारा था। लेकिन वृद्ध महिला महाराज के आदेश की अवेहलना करने से भयभीत थी। क्योंकि सकट के शुभ अवसर पर उसकी एकमात्र सन्तान का वध कर दिया जायेगा। वह वृद्ध स्त्री सकट माता की अनन्य भक्त थी। उसने अपने पुत्र को प्रतीकात्मक सुरक्षा कवच के रूप में सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा दिया। वृद्ध स्त्री ने अपने पुत्र से भट्टी में प्रवेश करते समय सकट देवी की प्राथना करने को कहा तथा यह विश्वास दिलाया कि सकट माता की कृपा से यह वस्तुयें भट्टी की अग्नि से उसकी रक्षा करेंगी। बालक को भट्टी में बैठाया गया। उसी समय वृद्ध स्त्री ने अपने एकमात्र पुत्र की रक्षा हेतु देवी सकट की आराधना आरम्भ कर दी। भट्टी में अग्नि दहन करने के पश्चात् उसे आगामी दिनों में तैयार होने हेतु छोड़ दिया गया।

जिस भट्टी को पकने में अनेक दिनों का समय लगता था। सकट देवी की कृपा से वह एक रात्रि में ही तैयार हो गयी। अगले दिन जब कुम्हार भट्टी का निरीक्षण करने आया तो वह आश्चर्यचकित रह गया। उसने ने पाया कि उस वृद्ध स्त्री का पुत्र तो जीवित एवं सुरक्षित है। साथ ही वह समस्त बालक भी पुनः जीवित हो चुके थे जिनकी बलि भट्टी तैयार करने से पूर्व दी गयी थी।

इस घटनाक्रम के पश्चात् समस्त नगरवासियों ने सकट माता की शक्तियों एवं उनके करुणामय स्वभाव की महिमा को स्वीकार कर लिया। सकट माता के प्रति अटूट निष्ठा व अखण्ड विश्वास हेतु नगरवासियों ने उस बालक व उसकी माँ की अत्यधिक प्रसंशा की। सकट चौथ पर्व सकट देवी के प्रति आभार प्रकट करने हेतु मनाया जाता है। इस अवसर पर मातायें सकट माता की पूजा-अर्चना करती हैं एवं अपनी सन्तानों की समस्त प्रकार की अप्रिय घटनाओं से रक्षा हेतु माता से प्रार्थना करती हैं। 

सकट चौथ व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त

सकट चौथ व्रत में सुबह की पूजा के लिए दो मुहूर्त सबसे शुभ माने जा रहे हैं। पहला मुहूर्त सुबह 5 बजकर 27 मिनट से 6 बजकर 21 मिनट तक है। दूसरा मुहूर्त सुबह 8 बजकर 34 मिनट से लेकर 9 बजकर 53 मिनट तक है। इसके बाद शाम में प्रदोष काल में गणेशजी की पूजा की जाती है और व्रत कथा का पाठ किया जाता है। पंडितों के अनुसार सकट चौथ पर भगवान गणेश की पूजा होती है। सुबह सूर्योदय से पहले उठकर, नहाकर, साफ और पीले कपड़े पहनने चाहिए। गणेशजी का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें। हरे या लाल कपड़े से ढकी चौकी पर गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर रखें। सिंदूर, फूल, फल, मिठाई, दूर्वा और तिल से बनी चीजें गणेशजी को अर्पित करें। सकट व्रत कथा पढ़ें और गणेश जी की आरती करें। प्रसाद सभी में बांटें। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से संकट दूर होते हैं। सकट चौथ के दिन गणेश जी की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।सकट चौथ व्रत को रात में 9 बजकर 9 मिनट पर चंद्रोदय होगा। इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देकर उनकी पूजा करना काफी शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस समय पूजा करने से भक्तों पर चंद्रमा की कृपा बरसती है और संतान की आयु लंबी होती है।संकष्टी चतुर्थी, संकटों को दूर करने वाली चतुर्थी, भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की खुशहाली और लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। गणेश जी, प्रथम पूज्य देवता होने के कारण, हर शुभ कार्य से पहले पूजे जाते हैं। इस व्रत में उपवास के साथ गणेश जी की कथा भी सुनी जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से आपकी संतान को करियर में बड़ी सफलता प्राप्‍त होती है और उनकी तरक्‍की होती है।पंडितों के अनुसार का व्रत खास होता है इसलिए इस दिन सकट चौथ के दिन भगवान गणेश को उनके हरे रंग के ही कपड़े पहनाना चाहिए। सकट चौथ के दिन भगवान गणेश को तिलकुट का भोग लगाना न भूलें। इस दिन तिल से बनी चीजों, तिल के लड्डू या तिल से बनी मिठाई का भोग लगाया जा सकता है। सकट चौथ के दिन चंद्रमा को जल अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।सकट चौथ की पूजा में गणेश जी को तिल और गुड़ से बना विशेष भोग तिलकुट अर्पित करते हैं। इस वजह से सकट चौथ को तिलकुट चौथ कहा जाता है। तिलकुट का भोग चढ़ाने से गणेश जी खुश होते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।शास्त्रों के अनुसार सकट चौथ का व्रत रखने से संतान सुखी और सुरक्षित रहती है। सकट चौथ की पूजा और व्रत से गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है। जीवन में सुख, समृद्धि और शुभता बढ़ती है और गणेश जी के आशीर्वाद से व्यक्ति के जीवन में आने वाले संकट दूर होते हैं।

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