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मेरठ। ब्लड कैंसर जिसे हेमेटोलॉजिकल मैलिग्नेंसी भी कहा जाता है एक गंभीर बीमारी है जो ब्लड सेल्स के निर्माण और उनके कार्य को प्रभावित करती है। इससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, प्लेटलेट्स और हीमोग्लोबिन का स्तर घट जाता है, जिस कारण संक्रमण का खतरा बढ़ता है। इससे बार-बार खून बहने या थकान जैसी समस्याएं भी होने लगती हैं।
बोन मैरो में बनने वाली स्टेम सेल्स सामान्य रूप से तीन प्रकार ब्लड सेल्स रेड ब्लड सेल्स, वाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स में बदलती हैं। लेकिन ब्लड कैंसर में यह प्रक्रिया बाधित हो जाती है और असामान्य सेल्स की अनियंत्रित वृद्धि शुरू हो जाती है, जिससे रक्त अपने जरूरी कार्य प्रभावी ढंग से नहीं कर पाता। मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत के हेमेटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉ फरान नईम ने बताया कि ब्लड कैंसर के लक्षण धीरे या अचानक सामने आ सकते हैं। इसके आम संकेतों में लगातार थकान या कमजोरी, बार-बार संक्रमण, बिना कारण वजन घटना, आसानी से चोट लगना या खून बहना, गर्दन या शरीर के अन्य हिस्सों में सूजी हुई गांठें (लिम्फ नोड्स), सिरदर्द, मसूड़ों की सूजन, थोड़े परिश्रम में सांस फूलना, हड्डियों में दर्द या फ्रैक्चर, बुखार, ठंड लगना और रात में पसीना आना शामिल हैं। इन लक्षणों की समय पर पहचान ब्लड कैंसर के इलाज में बेहद अहम होती है। ब्लड कैंसर का सटीक कारण अभी तक पूरी तरह ज्ञात नहीं है, लेकिन कुछ जोखिम कारक जैसे बढ़ती उम्र, हानिकारक रसायनों के संपर्क में आना, धूम्रपान, पहले हुए कैंसर का इलाज और परिवार में ब्लड डिसऑर्डर का इतिहास इसके विकास में भूमिका निभा सकते हैं। इन कारकों के बारे में जानकारी होना शुरुआती पहचान और बचाव के लिए मददगार होता है। ब्लड कैंसर मुख्यतः तीन प्रकार का होता है कृल्यूकेमिया, लिम्फोमा व मायलोमा। इसका इलाज कैंसर के प्रकार, उसकी अवस्था और मरीज के समग्र स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर उपचार में कीमोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी, रेडिएशन थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी और बोन मैरो या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट शामिल हैं। डॉ फरान ने बताया कि समय पर और सटीक निदान ब्लड कैंसर के इलाज में निर्णायक भूमिका निभाता है। कुछ प्रकार जैसे एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (खासकर बच्चों में) और हॉजकिंस लिम्फोमा का इलाज लगभग 80 प्रतिशत मामलों में सफल होता है। आज कीमोथेरेपी के साथ टार्गेटेड और इम्यूनोथेरेपी जैसी आधुनिक तकनीकों ने इलाज को अधिक प्रभावी और कम दुष्प्रभाव वाला बना दिया है। कुछ मरीज केवल दवाओं से ठीक हो जाते हैं, जबकि कुछ को बोन मैरो या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है। यह तकनीक लिंफोमा, ल्यूकेमिया, मायलोमा, हॉजकिंस डिजीज, एप्लास्टिक एनीमिया, सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया जैसी बीमारियों में भी सफलतापूर्वक उपयोग की जा रही है। यहां तक कि कुछ बाल रोगों जैसे न्यूरोब्लास्टोमा में भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट से उत्कृष्ट परिणाम मिलते हैं। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट दो प्रकार का होता हैकृऑटोलॉगस ट्रांसप्लांट और एलोजेनिक ट्रांसप्लांट। ऑटोलॉगस ट्रांसप्लांट में मरीज के खुद के स्टेम सेल्स को हाई-डोज कीमोथेरेपी से पहले एकत्र कर सुरक्षित रखा जाता है और बाद में वापस शरीर में डाल दिया जाता है। वहीं, एलोजेनिक ट्रांसप्लांट में किसी डोनर से स्टेम सेल्स लिए जाते हैं जो आमतौर पर जीन मैचिंग वाले भाई-बहन या किसी अन्य संगत दाता से मिलते हैं। आज स्टेम सेल एकत्र करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती, यह प्रक्रिया रक्त के माध्यम से विशेष मशीनों की मदद से आसानी से की जाती है। ब्लड कैंसर शरीर को इसलिए गंभीर रूप से प्रभावित करता है क्योंकि यह बोन मैरो में बनने वाली स्टेम सेल्स की सामान्य वृद्धि को बाधित कर देता है। परिणामस्वरूप, शरीर की संक्रमण से लड़ने और खून के बहाव को रोकने की क्षमता घट जाती है। सारांश रूप में कहा जाए तो समय पर पहचान और सही उपचार से आज अधिकांश ब्लड कैंसर पूरी तरह ठीक किए जा सकते हैं। मरीजों को चाहिए कि वे शुरुआती लक्षणों के साथ ही किसी अनुभवी हीमेटोलॉजिस्ट से परामर्श लें। जागरूकता, शुरुआती जांच और आधुनिक चिकित्सा पद्वतियों जैसे कीमोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन ने इस बीमारी को पहले की घातक स्थिति से निकालकर मरीजों को एक नई उम्मीद और जीवन का अवसर प्रदान किया है।

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