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अफवाहें, अनुमान, अटकले, आशंकाएं! कश्मीर में यही सब तो चल रहा था। कश्मीर में कुछ बड़ा होने वाला है! अटकलों का बाजार गर्म। आम लोग परेशान। 5 अगस्त ही वो तारीख थी जब 2019 में मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया था। लेकिन इस फैसले के पीछे की कहानी उतनी सादी नहीं जितनी दिखती है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने इसे विश्वासघात करार दिया था। उन्होंने कहा था कि ये कश्मीर के साथ धोखा है। लेकिन क्या ये उनका असली स्टैंड था? क्या फारूक अब्दुल्ला धारा 370 हटाने के वाकई खिलाफ थे या पर्दे के पीछे एक और कहानी लिखी जा रही थी। भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख एएस दुलत ने अपनी किताब द चीफ मिनिस्टर एंड स्पाई में सनसनीखेज दावा किया है। उनके मुताबिक फारूक अब्दुल्ला ने निजी बातचीत में कहा कि हम इस प्रस्ताव को पास करने में मदद करते। हमें भरोसे में क्यों नहीं लिया गया। अब दावा सामने आया तो कई तरह की बातें भी उठने लगी। कहा जाने लगा कि ये तो वही फारूक अब्दुल्ला थे जो धारा 370 को हटाने जाने को विश्वासघात बताते थे। इसके हिमायत में लगातार केंद्र पर आग उगलते नजर आते थे। लेकिन बंद दरवाजों के पीछे तो कुछ और ही खेल चल रहा था। 

रॉ के पूर्व चीफ की किताब में बड़ा खुलासा

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला 2019 में केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के तरीके से दुखी थे और एक निजी बातचीत में उन्होंने पूर्व रॉ प्रमुख ए एस दुलत से कहा कि अगर दिल्ली ने उनसे बात की होती तो वे विधानसभा में इसे पारित करने में मदद कर सकते थे। दुलत का यह भी दावा है कि 5 अगस्त, 2019 को अब्दुल्ला के घर में नज़रबंद रहने के दौरान उनसे बात करने के फ़ैसले के बाद दिल्ली ने उनसे संपर्क किया था। उनका दावा है कि ऐसा अब्दुल्ला को यह समझाने के लिए किया गया था कि वे अनुच्छेद 370 का मुद्दा न उठाएँ या अपनी रिहाई के बाद पाकिस्तान का ज़िक्र न करें। दुलत का दावा है कि अब्दुल्ला सिर्फ़ संसद में बोलने के लिए सहमत हुए थे। पुस्तक, द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई ने अब्दुल्ला के नेतृत्व और यहां तक ​​कि उनके व्यक्तित्व की बड़े पैमाने पर प्रशंसा की है। उन्हें प्रतिभाशाली, महान और हमेशा दिल्ली के सर्वश्रेष्ठ खेलों से दो कदम आगे कहा है।

छलका फारूक अब्दुल्ला का दर्द 

लेकिन ऐसे समय में जब उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार को केंद्र शासित प्रदेश में विपक्षी दलों की ओर से अनुच्छेद 370 की बहाली के मुद्दे पर समझौता करने के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है, ये दावे अब्दुल्ला परिवार के लिए शर्मिंदगी की बात बन गए हैं। फारूक अब्दुल्ला ने इन दावों को गलत बताते हुए खारिज कर दिया। उन्होंने श्रीनगर में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह मुझे दोस्त कहते हैं, एक दोस्त ऐसा नहीं लिख सकता। उन्होंने ऐसी बातें लिखी हैं जो सच नहीं हैं… इंग्लैंड के शाही परिवार के बारे में उनके परिवार के एक सदस्य ने एक किताब लिखी थी। (रानी) एलिजाबेथ ने केवल एक शब्द का इस्तेमाल किया था – ‘यादें अलग-अलग हो सकती हैं’। उन्होंने लिखा है कि हम (एनसी) भाजपा से हाथ मिलाने के लिए तैयार थे। यह गलत है… अगर हमें (अनुच्छेद) 370 को तोड़ना होता, तो फारूक अब्दुल्ला विधानसभा में दो-तिहाई बहुमत से (स्वायत्तता पर प्रस्ताव पारित) क्यों करते? 

दुलत ने अब्दुल्ला ने पूरी किताब पढ़ने का किया अनुरोध

दुलत ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि मैं डॉक्टर साहब (फारूक अब्दुल्ला) से अनुरोध करूंगा कि वे किताब पढ़ें और प्रेस में चल रहे विवादों पर ध्यान न दें। यह किताब डॉ. फारूक अब्दुल्ला की प्रशंसा है, उनकी आलोचना नहीं। और डॉक्टर साहब हमेशा मेरे दोस्त रहेंगे। मुझे यकीन है कि जब वे परसों दिल्ली आएंगे, तो वे मेरी बहन से मिलेंगे जो तीन सप्ताह से बिस्तर पर है। दुलत ने अपनी किताब का जिक्र करते हुए कहा कि 5 अगस्त, 2019 के फ़ैसलों और उसके बाद की घटनाओं पर आधारित एक अध्याय में अब्दुल्ला और दुलत के बीच हुई बातचीत का जिक्र है, जब अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद अब्दुल्ला घर में नज़रबंद थे। उन्होंने (अब्दुल्ला) कहा, नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर में विधानसभा में प्रस्ताव भी पारित करवा सकती थी। जब मैं 2020 में उनसे मिला, तो उन्होंने मुझसे कहा कि हम मदद करते। हमें विश्वास में क्यों नहीं लिया गया?

केंद्र ने अब्दुल्ला से बात करने के लिए दुलत को भेजा

उनका दावा है कि अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 को हटाए जाने से पहले और बाद में अपनी नजरबंदी से सबसे ज्यादा टूट गए थे, क्योंकि वह हमेशा दिल्ली के साथ खड़े रहे थे। दुलत लिखते हैं जब उन्होंने बाद में मुझसे इस बारे में बात की, तो वह स्पष्ट थ। उन्होंने थोड़े कड़वे शब्द में कहा कि कर लो अगर करना है। पर ये गिरफ्तार क्यों करना था? अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल के दौरान कश्मीर पर प्रमुख बैकरूम वार्ताकार दुलत ने पुस्तक में दावा किया है कि उन्हें 2020 में दिल्ली द्वारा अब्दुल्ला से मिलने और रिहाई के बाद अनुच्छेद 370 पर बात न करने के लिए मनाने के लिए भेजा गया था।

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