प्रेमशंकर
मेरठ। आम जनता के लिए भगवान स्वरूपी डाक्टर बनने के लिए एमबीबीएस की पढ़ाई करना जरूरी है। वहीं, एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्रों को सबसे पहले एनाॅटमी यानी मानव शरीर की संरचना के बारे में पढ़ाया जाता है। इसके लिए मृत मानव शरीर की जरूरत होती है जो बाजार में उपलब्ध नहीं होता। ऐसे में मानव शरीर केवल दान द्वारा ही पाया जा सकता है। लेकिन एलएलआरएम मेडिकल काॅलेज के एनाॅटमी के छात्र इन दिनों मानव शरीर की कमी से जूझ रहें है। हालांकि गुरूवार को एक 85 वर्षीय व्यक्ति का मृत शरीर काॅलेज को मिला है जिसके बाद छात्रों को कुछ राहत जरूर मिलेगी।
मृत देह मेडिकल कॉलेज के छात्रों के लिए साइलेंस टीचर की तरह होती है, वे इस मृत शरीर से इंसान के शारीरिक अंगों पर प्रैक्टिकल कर दूसरों को जीवन देना सीखते हैं। जबकि देहदान न होने के कारण एमबीबीएस के छात्रों को पढ़ाई में कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। हालांकि अब धीरे-धीरे लोग देहदान के प्रति जागरूक हो रहे हैं, जिससे एमबीबीएस के छात्रों को काफी हद तक मदद मिल रही है। लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ आरसी गुप्ता ने बताया कि बीते अगस्त 2022 में महेश चंद्र पुत्र स्व अतर सैन जैन उम्र 85 वर्ष निवासी जवाहर क्वाटर्स ने मेडिकल कॉलेज के शरीरिक संरचना विभाग में अपनी देह दान का रजिस्ट्रेशन कराया था। गुरूवार को महेश चंद की मौत होने के बाद उनके बच्चों ने उनकी देह को मेडिकल कॉलेज के शरीर रचना विभाग में पढ़नेे वाले छात्रों के लिए दान कर दिया। डाॅ आरसी गुप्ता ने बताया कि एनएमसी की गाइडलाइन के अनुसार एमबीबीएस के छात्रों को हर साल कुल 15 शवों की जरूरत होती है। लेकिन इस साल मेडिकल के एनाॅटमी विभाग में 150 छात्र हैं जबकि मृत शरीरों की संख्या केवल 13 है जबकि उन्हें 15 शरीरों की जरूरत है। अभी भी दो मृत शरीर कम है जिस वजह से छात्रों को पढ़ाई करने में परेशानी हो रही है।
मौत के बाद अपने शरीर को दान करना एक पुण्य कार्य है। वहीं, किसी की भी मौत होने के बाद उसके शरीर का रीति रिवाजों के साथ अंतिम क्रियाक्रम तो कर दिया जाता है लेकिन जरा सोचें यदि उसी शरीर को मेडिकल के छात्रों को दान कर दिया जाए तो यह उनके लिए एक अनमोल सौगात साबित होगी। वहीं, मरने वाला भी देहदान के बाद हमेशा के लिए अमर हो जाएगा।


