

रंग पंचमी इसे कृष्ण पंचमी और देव पंचमी भी कहा जाता है। इसे देवताओं की होली भी कहा जाता है। इस दिन राधा कृष्ण की पूजा होती है जिससे जीवन में नया संचार होता है तो आइए हम आपको रंग पंचमी का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।जानें रंग पंचमी के बारे में
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली पंचमी तिथि पर रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार काफी हद तक रंगों के त्योहार यानी होली से मेल खाता है, क्योंकि इसमें भी रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन पर देवी-देवताओं को रंग-गुलाल अर्पित किया जाता है।
होली के बाद चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में इस पर्व की शुरुआत हुई थी। भगवान कृष्ण ने राधा रानी के साथ होली खेली थी, जिसे देखकर अन्य गोपियां भी राधा-कृष्ण के साथ शामिल हुई थीं। देवी-देवता भी भगवान कृष्ण को रंगों का उत्सव मनाते हुए मंत्रमुग्ध हो गए थे और वो भी ग्वालों और गोपियों के रूप में शामिल हुए थे। इसीलिए इसे देवी-देवताओं की होली भी कहा जाता है। रंग पंचमी के दिन देवी-देवताओं की पूजा करने से भी शुभ फलों की प्राप्त होती है।
रंग पंचमी का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 18 मार्च की रात्रि में 10 बजकर 12 मिनट से शुरू होगी वहीं पंचमी तिथि की समाप्ति 20 मार्च की सुबह 12 बजकर 40 मिनट (19 मार्च की रात्रि) पर होगी। इसलिए उदयातिथि की मान्यता के अनुसार रंग पंचमी का त्योहार 19 मार्च को ही मनाया जाएगा। रंग पंचमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में आप देवी-देवताओं की पूजा करके शुभ फल पा सकते हैं। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह लगभग 4 बजकर 52 मिनट से 5 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। इसके बाद दोपहर के समय 2 बजकर 30 मिनट से 3 बजकर 54 मिनट तक विजय मुहूर्त होगा। शाम के समय 6 बजकर 30 मिनट से 6 बजकर 55 मिनट तक पूजा आराधना के लिए शुभ समय रहेगा।
जानें रंग पंचमी का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रंग पंचमी का त्योहार प्रेम-सौहार्द और स्नेह को बढ़ाता है। इस दिन राधा-कृष्ण के साथ ही देवी-देवताओं की पूजा करके जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति होती है। अगर आप प्रेम या वैवाहिक जीवन में प्रेम चाहते हैं तो इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा से आपको लाभ होता है। इस दिन रंग गुलाल को आसमान में फेंकने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। माना जाता है कि इस दिन रंग गुलाल उड़ाने से वातावरण में भी शुद्धता आती है। इस दिन अपने इष्ट देव और देवी देवताओं को रंग गुलाल लगाने से आपके जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है।
रंगपंचमी से जुड़ी पौराणिक कथा भी है रोचक
शास्त्रों में रंगपंचमी के बारे में यह कथा प्रचलित है, इस कथा के अनुसार कालिदास द्वारा रचित कुमारसंभवम् में निहित है कि देवी मां सती के आहुति के बाद भगवान शिव ने दूसरी शादी न करने का प्रण लिया था। यह जान तारकासुर ने ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या कर यह वरदान प्राप्त कर लिया कि उसका वध भगवान शिव के पुत्र के अलावा कोई और न कर सके। यह जान देवता चिंतित हो उठे। तब देवताओं ने ब्रह्मा जी और विष्णु जी की मदद से कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने की सलाह दी।कामदेव के दुस्साहस को देख भगवान शिव ने तत्क्षण ही उसे भस्म कर दिया। इस पर कामदेव की पत्नी देवी रति व अन्य देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने कामदेव को पुनः जीवित करने का आश्वासन दिया। इस घटना से प्रसन्न होकर सभी देवी-देवता रंगोत्सव मनाने लगे। तभी से रंग पंचमी मनाने की शुरुआत हुई।
इसलिए भी खास होती है रंग पंचमी
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रंग पंचमी का दिन भगवान कृष्ण और राधा रानी जी को अर्पित माना जाता है, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर द्वापर युग में श्री कृष्ण और राधा जी ने एक-दूसरे के साथ रंगोत्सव मनाया था। इसी कारण इस दिन को कृष्ण पंचमी तथा देव पंचमी भी कहा जाता है। राधा-कृष्ण जी की साथ में पूजा करने का विशेष महत्व माना गया है, इससे साधक को प्रेम संबंधों में मजबूती आती है। साथ ही इस दिन पर अपने-अपने आराध्य देव को भी रंग अर्पित किया जाता है। इस दिन पर हवा में गुलाल उड़ाया जाता है और यह माना जाता है कि जिस भी व्यक्ति पर यह रंग आकार गिरता है, उसे देवी-देवताओं की विशेष कृपा मिलती है।
रंग पंचमी पर रंगोत्सव का किया जाता है आयोजन
रंग पञ्चमी का पर्व भगवान कृष्ण द्वारा श्री राधा रानी जी के साथ रंग-गुलाल की होली खेलने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। रंग पञ्चमी के पावन अवसर पर देश के विभिन्न मन्दिरों में रंगोत्सव एवं विशेष झांकियों का आयोजन भी किया जाता है।
रंग पंचमी का होता है धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
पंडितों के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण और राधा रानी की होली होती है। इस आनंद के अवसर पर देवताओं ने आकाश से फूलों की वर्षा की, जिसे देखकर लोगों ने रंगों और गुलाल के साथ इस परंपरा की शुरुआत की।
रंग पंचमी पर होती है गुलाल उड़ाने की परंपरा
पंडितों के अनुसार रंग पंचमी पर गुलाल उड़ाने से देवता प्रसन्न होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह रंग केवल बाहरी नहीं होते, बल्कि हमारे जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार भी करते हैं।
रंग पंचमी व्रत से नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति
पौराणिक मान्यता के अनुसार, रंग पंचमी के दिन वातावरण में फैली सभी नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैं और वातावरण शुद्ध हो जाता है। इस दिन किए गए विशेष पूजन से घर में शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
ऐसे मनाया जाता है रंग पंचमी का त्योहार
1. गुलाल और अबीर अर्पण:इस दिन विशेष रूप से राधा-कृष्ण को गुलाल और अबीर अर्पित किया जाता है।
2. धार्मिक अनुष्ठान और पूजन के अलावा कई स्थानों पर विशेष धार्मिक अनुष्ठान और पूजन का आयोजन किया जाता है।
रंग पंचमी पर निकलते हैं विशेष जुलूस और शोभायात्रा
महाराष्ट्र में “शिमगा” उत्सव के रूप में यह पर्व अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर रंग-बिरंगे जुलूस निकाले जाते हैं और ढोल-नगाड़ों की थाप पर नृत्य एवं संगीत का आयोजन किया जाता है। रंग पंचमी के दिन विभिन्न स्थानों पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जहां लोग एकत्रित होकर गुलाल उड़ाते हैं और उत्सव का आनंद लेते हैं।