मेरठ। शास्त्रीनगर में 35 साल पुराने कांम्पलेक्स पर आखिर आवास विकास का चाबुक चल ही गया। शनिवार को ध्वस्तीकरण से पहले ही विरोध को देखते हुए मौके पर भारी संख्या में पुलिस फोर्स मौजूद रही। ध्वस्तीकरण वाली जगह से पहले ही बैरिकेटिंग कर सड़कों पर आवाजाही रोक दी गई थी।
लंबे समय से चले आ रहे प्रकरण के बाद आखिर आवास विकास ने बुल्डोजर की कार्रवाई को अंजाम दे दिया जिसके बाद व्यापारी वर्ग में आक्रोष पनप रहा है। बताया जा रहा है यह इकलौता कांम्पलेक्स नहीं है जिसपर बुल्डोजर की कार्रवाई हुई है, आवास विकास ने शास्त्रीनगर और जाग्रति विहार में ऐसे करीब तीन हजार व्यापारिक प्रतिष्ठानों को चिन्हित कर रखा है जिनपर इसी तरह की कार्रवाई होना तय माना जा रहा है। वहीं, अकेले शास्त्रीनगर सैक्टर छह में ही आठ सौ दुकानें है जिनको नोटिस जारी किया गया है। सुबह ग्यारह बजे शुरू हुई ध्वस्तीकरण की कार्रवाई देर शाम तक जारी रही जो संभवतः रविवार को भी चलेगी। वहीं, व्यापारियों का कहना है ध्वस्तीकरण की कार्रवाई से पहले प्रशासन ने व्यापारियों के विरोध को दबाने के लिए उनपर दबाव बनाते हुए व्यापारियों पर पहले से ही एफआईआर दर्ज करा दी थी। स्थानीय व्यापारियों का कहना है प्रशासन उनसे कमर्शियल टैक्स, कमर्शियल बिजली का बिल और कमर्शियल पानी का बिल वसूलता रहा है बावजूद इसके यह कार्रवाई की गई है। शास्त्रीनगर सेक्टर दो व्यपार संघ के अध्यक्ष मनोज अग्रवाल ने बताया कि जब व्यापारियों ने यह जगह खरीदी थी तो उस समय उन्होंने कमर्शियल स्टाॅम्प ड्यूटी दी थी। यानी कहा जा सकता है कि उनसे पांच गुना ज्यादा कर वसूली की जाती रही है बावजूद इसके उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों को ढहा दिया। व्यापारियों का यहां तक कहना है कि आवास विकास सुप्रिमकोर्ट के जिस आदेश का हवाला दे रहा है वह पूरे देश के लिए है इसमें नगर निगम व मेरठ विकास प्राधिकरण जैसे विभागों द्वारा बनाए गए कांम्पलेक्स भी शमिल है यानी यदि उनसब पर भी इसी तरह की कार्रवाई होती है तो पूरा शहर जंगल बन जाएगा। अब व्यापारी इस ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के लिए प्रदेश सरकार से ज्यादा आवास विकास को दोषी मान रहें है। उनका मानना है कि आवास विकास के अधिकारियों की सहमती के बाद निर्माणकार्य संभव हुए है, ऐसे में इसका खामियाजा अकेले व्यापारियों को ही क्यों भुगतना चाहिए। आवास विकास के अधिकारियों को भी कार्रवाई की जद में लाना जारूरी है जिन्होंने प्रदेश सरकार की छवि को धूमिल करने का काम किया है। संभवतः इसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनावों में सरकार को भी उठाना पड़ सकता है।

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